Wednesday, 12 October 2011

Shivani

शिवानी भटनागर केस में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि प्रदीप शर्मा के खिलाफ हत्या का केस साबित करने में अभियोजन पक्ष सफल रहा है, लिहाजा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उसकी अपील खारिज की जाती है। लेकिन आर. के. शर्मा, श्रीभगवान और सत्यप्रकाश के खिलाफ अभियोजन पक्ष बिना संदेह केस साबित नहीं कर पाया। सो इनको बरी किया जाता है।

पुलिस ने आरोप लगाया था कि आर. के. शर्मा ने शिवानी से पीछा छुड़ाने के लिए श्रीभगवान से संपर्क किया। फिर श्रीभगवान ने अपने जानकार सत्यप्रकाश से संपर्क किया। सत्यप्रकाश ने हत्या के लिए अपने भतीजे प्रदीप शर्मा से संंपर्क किया। आर.के. शर्मा ने 13 जनवरी, 1999 को अशोका होटल में शिवानी को बुलाया। वहां श्रीभगवान, सत्यप्रकाश, वेदप्रकाश शर्मा और कालू ने शिवानी को देखा। वहां प्रदीप नहीं था। श्रीभगवान, सत्यप्रकाश और प्रदीप शर्मा 19 जनवरी, 1999 को सुंदर नगर इलाके में मिले। तब सत्यप्रकाश ने प्रदीप से कहा था कि वह हत्या को अंजाम देगा तो उसे हरियाणा में नौकरी वापस दिलाने में मदद की जाएगी। इस दौरान प्रदीप ने हत्या को अंजाम देने के लिए 3 लाख रुपये भी मांगे। 50 हजार रुपये अडवांस के तौर पर दिए गए।

जस्टिस बी. डी. अहमद और जस्टिस मनमोहन सिंह की बेंच ने कहा कि ये बातें सिर्फ गवाहों के बयान के आधार पर थीं, इस बयान के आधार पर कोई रिकवरी आदि नहीं थी। ऐसे में ये बयान मान्य नहीं हैं। सुंदर नगर में मीटिंग के सबूत नहीं हैं। 50 हजार रुपये दिए जाने के भी सबूत नहीं हैं। सत्यप्रकाश और प्रदीप शर्मा आपस में रिश्तेदार थे, लेकिन इसके अलावा कोई और लिंक साबित नहीं होता। प्रदीप शर्मा का इस मामले आरोपियों आर. के. शर्मा और अन्य से भी कोई लिंक साबित नहीं होता। अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि 23 जनवरी, 1999 को प्रदीप शर्मा के साथ अन्य आरोपियों के बीच कोई बात हुई थी। यह बात भी नहीं है कि शुरुआत में प्रदीप शर्मा साजिश का हिस्सा था।

अदालत ने कहा कि प्रदीप ने हत्या की, यह बात साबित होती है लेकिन हत्या का मकसद क्या है यह साफ नहीं है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रदीप ने हत्या अकेले की या फिर आर. के. शर्मा के कहने पर या फिर किसी और के इशारे पर? ये ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब हम मौजूदा सबूतों पर नहीं दे सकते। पुलिस ने जो सबूत पेश किया है, वे उम्दा किस्म के नहीं हैं।

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